निदन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु, *लक्ष्मी: समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा, न्याय्यात्पथ: प्रविचलन्ति पदं न धीरा:।।
[नी० श० ७९]
चाहे नीति-निपुण व्यक्ति हमारी निन्दा करें और चाहे स्तुति करें, लक्ष्मी अर्थात् धन-सम्पत्ति रहे चाहे न रहे, आज ही मरना हो चाहे एक युग के पश्चात् मरना हो, धीर पुरुष न्याय के रास्ते से विचलित नहीं होते।
4 months ago